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Saturday, December 19, 2009

मेरे हिस्से की मिठास

मेरे मन के समंदर में
ढेर सारा नमक था
बिलकुल खारा
स्वादहीन
उन नोनचट दिनों में
हलक सूख जाता थी
मरुस्थली समय
जिद्द किये बैठा था
नन्हें शिशु सी मचलती थी प्यास
मोथे की जड़ की तरह
दुःख दुबका रहता था भीतर
उन्ही खारे दिनों में
समंदर की सतह पर
मेरे हिस्से की मिठास लिए
छप-छप करते तुम्हारे पांव
चले आये सहसा
और नसों में घुल गया चन्द्रमा .

Thursday, November 12, 2009

इस असंभव समय में

मेरी प्यास
गहरे समंदर में उतर जाती है
जब कहते हो तुम
आओ !
आ जाओ पास ,
नभ का अनंत विस्तार लिए
मेरी निजता
दुबक जाती है
तुम्हारी गोद में
और कई कई आंखों से
देखती हूँ तुम्हे
अनयन होकर ,
तुम्हारी लय पर
थिरकती हूँ मै
देह में विदेह होकर
और पोर पोर पर
मुस्कराते हो तुम
नियम से बेनियम होकर ,
आदिम धुनों में
तुम्हारा अनहद नाद
बजता है मुझमे
और उठती है हिलोर
इस असंभव समय में .

Friday, October 23, 2009

सिर्फ़ बचे तुम


आंकडों में लिपटा
तुम्हारा प्रेम
जोड़ते घटाते रहे तुम
शेष बचता रहा हर बार
पर मेरे लिए प्रेम
दो मिलकर एक बना
और एक दिन
एक भी समा गया शून्य में
सिर्फ़ बचे तुम

Monday, October 5, 2009

तुम्हारा चुम्बन

तुम्हारा वह चुम्बन
जिसमे घुली होती है
ईश्वर की आँख

झंकृत करती रहती है

अनवरत

मेरे जीवन के तार

उसमे भीगा होता है

पूरा का पूरा समुद्र

पूनम के चाँद को समेटे

नहा लेती हूँ मै
अखंड आद्रता

चांदनी ओढ़ कर
वहां विहँसता है बचपन
और घुटनों के बल
सरकता है समय
अपनी ढेर सारी
निर्मल शताब्दियों के साथ
सहेज लेती हूँ उसे
जैसे सहेजती है मां
पृथ्वी की तरह
अपनी कोख
.

Monday, September 14, 2009

तुमने लिखा............

तुमने लिखी
धरती
और वह हरी हो गई
तुमने आकाश लिखा
और वह नीला हो गया
तुमने सूरज लिखा
और वह छुप गया बादलों की ओट
तुमने चाँद लिखा
वह मुस्कराता रहा रात भर
तुमने हवा लिखी
नहा लिया उसने चंदन पराग
तुमने मुझे ही तो लिखा
बार-बार
लगातार

Thursday, August 20, 2009

उसकी खोज


वह खोजती है
उन शब्दों का साहचर्य
जहाँ आत्मा के पार का संसार
जीवित होता है,
और बांधता है पूरा आकाश,
वह खोजती है
उन क्षणों का सौन्दर्य
जहाँ शब्दों के बीच का मौन
महाकाव्य रचता है
सरल संस्तुतियों के साथ,
वह खोजती है
उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास

Sunday, July 19, 2009

गूंगी अयोध्या


गूंगी अयोध्या

टूटते हैं मन्दिर यहाँ

टूटती है मस्जिद यहाँ

टूटकर बिखर जाते हैं अजान के स्वर

चूर चूर हो जाती हैं घंटियों की स्वरलहरियां

कोई नही बचाता यहाँ सरगमों के स्वर

कोई नही पोछता सरयू के आंसू

उसकी लहरों की उदास कम्पन

अक्सर भटकती है सरयू

खोजते हुए सीता की कल-कल हँसी
(24 july 2009 ki "India News" magazine mein dekhein)
(Editor-Dr.Sudhir saxena)

Thursday, June 25, 2009

तंदुल और मैं

सुदामा के तंदुल सी मैं
छुपती रही यहाँ -वहां
तुम मिले
तुमने छुआ
मुझे मिला
प्रेम का ऐश्वर्य।

गेंद और मैं

गेंद थी मै
लेकर चली गई
यमुना की अतल गहराइयों में
और जब उबरे
लहरों पर नर्तन था
और थी बांसुरी की धुन ।

Friday, April 24, 2009

TUMHAARA NAAM

तुम्हारा नाम
पैदा करता है
नजरों में ठहराव
किसी भी गणित से परे
बार-बार तुम्हारा नाम
क्यूँ टकराता है मुझसे ?
कभी गली के किसी मोड़ पर
चौराहे की चहल-पहल
या राह चलते किसी घर पर
ठिठक जाती हैं नजरें
विमुग्ध हो जाती हूँ मैं,
हथेली पर बहुधा
लिखती हूँ तुम्हे
छू लेती हूँ हौले से
भर लेती हूँ ऊर्जा,
अक्सर किताबों में
लिख देती हूँ तुम्हे
घर की दीवारों पर
बिना लिखे ही दिखता है
तुम्हारा नाम
तुम्हारे नाम के नीचे
लिख देती हूँ अपना नाम
और मेरी संवेदना पा लेती है
सामीप्य का एहसास,
तुम्हारा नाम लिख कर
सुंदर अल्पना में छुपा देती हूँ
और तुम्हारी उपस्थिति
भर देती है प्राणों में उल्लास,
तुम्हारा नाम
मानो पूरी परिधि वाला कवच
मैं बड़ी निश्चिंत हूँ उसके भीतर.

Tuesday, April 21, 2009

संदेश

प्रेम करती हूँ तुम्हे/सघन चीड़ों के बीच
हवा सुलझाती है अपने को
चमकता है चाँद phosphorus की तरह
घुमक्कड़ पानियों पर
दिन जा रहे एक समान, पीछा करते एक दूजे का
पसर जाती बरफ नाचते लोगों के बीच
पश्चिम की ओर से फिसल जाती नीचे
एक चमकीली समुद्री चिडिया
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी भोर ही में
भीगी होती मेरी आत्मा भी
सबसे बड़ा तारा मुझे तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ, हवाओं में,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के साथ तार से संदेश भेजते हुए............

Saturday, April 18, 2009

हमन हैं इश्क मस्ताना , हमन को होशियारी क्या रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या न पल बिछुडे पिया हमसे, न हम बिछुडे पियारे से उन्ही से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या

Thursday, April 16, 2009

उनका जो काम है वे तो अहले-सियासत जाने, मेरा पैगाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे .

Monday, April 13, 2009

मैं बसाना चाहती हूँ स्वर्ग धरती पर आदमी जिसमें रहे बस आदमी बन कर उस नगर की हर गली तैयार करती हूँ आदमी हूँ आदमी से पया करती हूँ .

Sunday, April 12, 2009

हम अपने दर्द की शिदत को कम नहीं करते जरा सी बात पे आँखों को नम नहीं करते बने बनाए हुए रास्तों पे चलते नहीं तमाम लोग जो करते हैं हम नहीं करते

Sunday, April 5, 2009

गिरना

गिरो जैसे गिरती है बर्फ
ऊँची चोटियों पर
जहाँ से फूटती है मीठे पानी की नदियाँ
गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह
रीते पात्र में पानी की तरह गिरो
उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए
गिरो आंसू की एक बूंद की तरह
किसी के दुःख में
गेंद की तरह गिरो
खेलते बच्चों के बीच
गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह
एक कोंपल के लिए जगह खाली करते हुए_____नरेश सक्सेना जी (साभार- तदभव)

Wednesday, March 25, 2009

काम

बहुत से काम हैं
लिपटी हुई धरती को फैला दें
दरख्तों को उगायें , डालियों पर फूल महका दें
पहाडों को करीने से लगाएं
चाँद लटकाएं
ख़लाओं के सरों पे नीला आकाश फैलाएं
सितारों को करें रोशन
हवाओं को गति दे दें
फुदकते पत्थरों को पंख देकर नमीं दें
लबों को मुस्कराहट .......

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