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Saturday, February 20, 2010

पात्रता



मै ऐसे लोक मे आ गई हूँ
जिसका ईश्वर और नागरिक
सिर्फ एक है
उसकी अंतहीन सीमाओं मे
मेरा वजूद
ले चुका है प्रवेश
बिना किसी प्रवेशपत्र के
जहाँ परिभाषाएं नदारद हैं
शब्द अनुपस्थित हैं और
उस अदृश्य धारावाहिक में
मेरी पात्रता युगों से तय है
वहाँ न कथानक है
न ही कोई संवाद
वहाँ समूची कथा कह रहा है
हमारे तुम्हारे मध्य का मौन .

(दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित )

Sunday, February 7, 2010

एक छाँव

मेरे प्रेम की गठरी में
थोड़े शब्द हैं
तो ढेर सारा मौन है
कुछ उदासियाँ हैं
तो अनंत हसीं है
मेरी इस गठरी में
दुबकी है कई अजन्मीं खुशियाँ,
मेरे प्रेम की गठरी में
कच्चे-पक्के रास्ते हैं
तो जंगली पगडंडियाँ भी हैं
मेरे वहाँ कस्तूरी बस्ती है
वन-वन भटकती नहीं
मेरे पास
मृगछौने सा समय करता है किलोल,
मेरे प्रेम की गठरी में
चुटकी भर ठिठुरन है
तो अंजुरी भर धूप है
मेरी इस पोटली में
एक ऐसी छीनी है
जिससे हो सकता है आसमान में सुराख,
मेरे प्रेम की गठरी में
एक छाव है जहां
सुस्ताता है उस पार का बटोही
मेरे यहाँ हुआ करती हैं
तृप्ति की कई-कई नदियाँ
मेरे पास लहरों की पूरी कथा है
मैंने अपनी गठरी में बाँधा है
एक नई धरती एक नया आसमान।
( लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारित )

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