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Saturday, July 31, 2010

वह पूछता है ...

वह पूछता है- 
'तुम इतना क्यूँ याद आती हो '
और सिवाय इसके कि 
यही सवाल मै उससे करूँ 
कुछ नहीं बचता है कहने को ।  

Saturday, July 17, 2010

तुम्हारी बारिश में.......

चाहती हूँ नहाना 
सिर से पाँव तक 
तुम्हारी बारिश में, 
तुम्हारे शब्दों की परतों में 
चाहती हूँ फैल जाना 
शबनमी छुअन बनकर 
उलीच देना है मुझे
उनके बीच समंदर, 
तुम्हारी बाँहों के बादल 
उमड़-घुमड़ कर आए हैं 
तरल गलबांह में प्रिय 
बांध लेना है सकल आकाश,
तुम्हारे अधरों की बूँदें 
बो रहीं रोमांच 
हवा की देह पर 
रोप देना है नदी की धार,
तुम्हारे मन के मेघो में 
इतनी मिठास ! इतनी मिठास ! 
भिगो देना है समूची सृष्टि को 
उसी में दिन रात । 

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