सुशीला पुरी
न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही ..........
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Wednesday, September 8, 2010
पावस रोज ही
भीगना
सिर्फ पावस में ही नहीं होता
उसकी बातें
भिगोती हैं
रोज ही
धरती की तरह
धानी चूनर
ओढ़ लेती हूँ मैं ।
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