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Thursday, October 28, 2010

याद

याद आई ऐसे 
जैसे, हवा आई चुपके से 
और रच... गई साँस ,
बिना किसी आहट के 
जैसे, दाखिल हुई धूप 
कमरे मे 
और भर गई उजास ,
जैसे खोलकर पिंजड़ा 
उड़ गया पंक्षी 
आकाश मे 
और पंखों मे समा गया हो 
रंग नीला- नीला ,
जैसे, झरी हो ओस 
बिल्कुल दबे पाँव 
और पसीज गया हो 
मन का शीशा 
उजली सी दिखने लगी हो 
पूरी दुनिया.....,
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण 
और धरती की तरह गोल 
माँ की कोख मे 
मचला हो नृत्य के लिए ....!

Saturday, October 2, 2010

उपस्थिति

तुम नहीं थे 
तब भी थे तुम 
स्पर्श की धरा पर 
हरी घास से 
बीज के भीतर
वृक्ष थे तुम ,
बाँसुरी से 
अधर पर 
नहीं थे तुम 
तब भी थे 
अमिट राग से ,
मौन के आर्त पल मे 
स्वरों का हाथ थामे 
व्याप्त थे पल पल 
शब्द पश्यन्ती 
महाकाव्य से ....!  

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