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Monday, November 21, 2011

बुद्धू


उसने कहा 
तुम बिल्कुल बुद्धू हो 
और मैं बुद्धूपने में खो गई 
उसे देख हंसती रही 
और हंसी समूची बुद्धू हो गई,
उसे छूकर लगा 
जैसे आकाश को छू लिया हो 
और पूरा आकाश ही बुद्धू हो गया चुपचाप,
उसकी आँखों में 
उम्मीद की तरलता  
और विश्वास की रंगत थी 
जो पहले से ही बुद्धू थी 
मेरी हथेलियाँ उसकी हथेलियों में थीं 
जैसे हमने पूरे ब्रह्मांड को मुट्ठी में लिया हो,
साथ चलते हुये हम सोच रहे थे 
दुनिया के साथ-  
अपने बुद्धूपने के बारे में  
हम खोज रहे थे 
पृथ्वी पर एक ऐसी जगह 
जो बिल्कुल बुद्धू हो..! 


Sunday, November 13, 2011

छोटू

( बाल -दिवस पर विशेष )


कोलवेल दबाते में
हथेली का खुरदुरापन चुभता है
कई कई प्रश्नों के साथ,
छोटू, जो घर घर से उठाता है कूड़ा
टुकुर टुकुर देखता है
घरों से निकलते स्कूल जाते बच्चे
भूकुर भूकुर ढ़ेबरी सा जलता है छोटू,
छूता है अपनी खुरदुरी हथेलियाँ
जो छूना चाहती हैं किताबें
और उनमें छपे अक्षरों की दुनियाँ,
ऐसी दुनियाँ
जहाँ मिल सके बराबरी
जहाँ दया में मिले
सीले बिस्कुटों की नमी न हो
कूड़ा उठाते हुये छोटू
छूना चाहता है
एक नया सूरज...!  

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